Transformer -Working Principle, Advantages

Transformer

Transformer एक ऐसी स्थैतिक युक्ति (static device) है, जो वैद्युत ऊर्जा को एक परिपथ से दूसरे परिपथ में स्थानान्तरित करती है। इसके साथ ही इस पुक्ति के द्वारा वोल्टता का अपचयन (step-down) एवं उच्चायन (step-up) सुगमता से किया जा सकता है। यह ध्यान रखना आवश्यक है कि यह युक्ति केवल प्रत्यावर्ती धारा (AC) आपूर्ति पर ही कार्य करती है, दिष्ट धारा (DC) आपूर्ति पर नहीं।

ट्रांसफॉर्मर, अन्योन्य प्रेरण (mutual inductance) के सिद्धान्त पर कार्य करता है। प्रेरण का अस्तित्व केवल ए.सी. परिपथ में होता है। अतः ट्रांसफॉर्मर भी केवल ए.सी. सप्लाई पर कार्य कर सकता है, डी.सी. पर नहीं।

अन्योन्य प्रेरण के सिद्धान्त के अनुसार, जब ट्रांसफॉर्मर की प्राइमरी वाइण्डिग में ए.सी. सप्लाई दी जाती है, तो इस वाइण्डिग के चारों ओर प्रत्यावर्ती स्वभाव वाला चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। इसी चुम्बकीय क्षेत्र के कारण सेकेण्डरी वाइण्डिग में वि.वा.ब. उत्पन्न हो जाता है, जबकि दोनों वाइण्डिग के मध्य किसी प्रकार का वैद्युतिक सम्बन्ध नहीं होता है।

ट्रांसफॉर्मर में निम्न मुख्य भाग होते हैं-

  1. वाइण्डिग Winding

  2. लेमिनेटिड कोर Laminated Core

  3. कन्टेनर Container

  4.  टर्मिनल Terminal

1. वाइण्डिग Winding

ट्रांसफॉर्मर में दो प्रकार की वाइण्डिग्स स्थापित की जाती हैं-

(1) प्राइमरी वाइण्डिग (Primary winding)

जिस वाइण्डिग को ए.सी. वैद्युत स्रोत से संयोजित किया जाता है, वह प्राइमरी वाइण्डिग कहलाती है। यह बोबिन के ऊपर कुण्डली बनाकर टर्न (turn) देकर निर्मित की जाती है।

इसमें चक्करों (turns) की संख्या, आवश्यक फ्लक्स घनत्व उत्पन्न करने की क्षमता के अनुसार दी जाती है।

(ii) सेकेण्डरी वाइण्डिग (Secondary winding)

 जिस वाइण्डिग को लोड (विद्युत शक्ति का उपभोग करने वाली युक्ति) से संयोजित किया जाता है, वह सेकेण्डरी वाइण्डिग कहलाती है। इसके तार का आकार (size) वाइण्डिग में से प्रवाहित धारा पर निर्भर करता है।

2. लेमिनेटिड कोर Laminated Core

यह सिलिकॉन स्टील की बनी होती है। प्रत्येक लेमिनेटिड कोर आपस में इन्सुलेटिड (insulated) रहती हैं। ट्रांसफॉर्मर वाइण्डिग को इन लेमिनेटिड कोर (core) पर स्थापित किया जाता है। तत्पश्चात् कोर को एक स्टील खोल (envelope) में स्थापित कर दिया जाता है।

कोर के मुख्य कार्य निम्न है-

  1. प्राइमरी वाइण्डिग द्वारा स्थापित चुम्बकीय क्षेत्र की चुम्बकीय बल रेखाओं का मार्ग पूर्ण रखना।

  2. प्राइमरी वाइण्डिग द्वारा स्थापित चुम्बकीय क्षेत्र की अधिक-से- अधिक चुम्बकीय बल रेखाओं को सेकेण्डरी में से गुजारना।

3. कन्टेनर Container

इसे आमतौर पर टैंक (tank) भी कहा जाता है। टैंक, ट्रांसफॉर्मर को ठण्डा रखने में सहायता करता है। इसमें तेल भरा रहता है, जो इन्सुलेशन तथा ट्रांसफॉर्मर को ठण्डा रखने के लिए एक माध्यम (medium) का कार्य करता है।

4. टर्मिनल Terminal

प्राइमरी एवं सेकेण्डरी वाइण्डिंग के सिरों पर विद्युत सप्लाई को आदान-प्रदान करने का कार्य टर्मिनलों के द्वारा किया जाता हैं। ट्रांसफॉर्मर के टर्मिनलों के द्वारा प्राइमरी पर विद्युत सप्लाई दी जाती है एवं सेकेण्डरी वाइण्डिग पर विद्युत प्राप्त की जाती है।

Working of Transformer

जब ट्रांसफॉर्मर की प्राइमरी वाइण्डिग को ए.सी. स्रोत से संयोजित किया जाता है, तो प्रत्यावर्ती विद्युत धारा के प्रवाह से प्राइमरी वाइण्डिग के चारों ओर एक प्रत्यावर्ती (alternating) स्वभाव का चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है।

सेकेण्डरी वाइण्डिग के चालक, प्राइमरी वाइण्डिग द्वारा स्थापित चुम्बकीय क्षेत्र की चुम्बकीय बल रेखाओं का छेदन करते हैं और फैराडे के विद्युत-चुम्बकीय प्रेरण सिद्धान्त के अनुसार, उनमे वि.वा.ब. उत्पन्न हो जाता है,

क्योकि प्राइमरी वाइण्डिग द्वारा स्थापित चुम्बकीय क्षेत्र प्रत्यावर्ती स्वभाव का होता है, इसलिए सेकेण्डरी वाइण्डिग के चालक, बिना कोई गति किए ही चुम्बकीय बल रेखाओं का छेदन करते हैं।

इस प्रकार, प्राइमरी वाइण्डिग तथा सेकेण्डरी वाइण्डिग में बिना किये संयोजन अथवा स्पर्श (connection or touch) के ही वैद्युत ऊर्जा, प्राइमरी वाइण्डिग से सेकेण्डरी वाइण्डिग में स्थानान्तरित (transfer) होती है, यह क्रिया ट्रांसफॉर्मर क्रिया (transformer action) कहलाती है।

ट्रांसफॉर्मर के लाभ Advantages of Transformer

ट्रांसफॉर्मर में मुख्य लाभ निम्नवत् है-

  1. ट्रांसफॉर्मर में कोई सचल पुर्जा (movable part) विद्यमान नहीं होता। अतः इसे विशेष देखभाल/अनुरक्षण की आवश्यकता नहीं होती है।
  2. स्थैतिक (static) प्रकार का उपकरण होने के कारण ट्रांसफॉर्मर की दक्षता 90 से 98% तक होती है, जबकि अन्य वैद्युतिक मशीनों को दक्षता इससे काफी कम होती है।

  3. यह अति उच्च वोल्टता पर सामान्य रूप से कार्य कर सकता है, जबकि अन्य वैद्युतिक मशीने अति उच्च वोल्टेज (400kV) पर सन्तोषजनक रूप से कार्य नहीं कर पाती।

  4.  ट्रांसफॉर्मर द्वारा वोल्टता घटाने का कार्य अत्यन्त अल्प वैद्युत शक्ति खपत पर सरलता से सम्पन्न किया जा सकता है, जबकि डी.सी. पर वोल्टता घटाने के लिए प्रतिरोधक प्रयोग किए जाते हैं, जो पर्याप्त मात्रा में वैद्युत शक्ति की खपत करते हैं।

  5.  ट्रांसफॉर्मर के उपयोग से वैद्युत शक्ति के पारेषण (transmission) एवं वितरण (distribution) की कुल लागत, डी.सी. प्रणाली की वैद्युत शक्ति के पारेषण एवं वितरण की लागत की अपेक्षा काफी कम होती है।

  6. वैद्युत शक्ति के पारेषण में होने वाले वोल्टता हास (voltage drop) को ट्रांसफॉर्मर द्वारा सुगमता से पूरा किया जा सकता है, जबकि डी.सी. प्रणाली में इस कार्य के लिए बूस्टर (booster) मोटर जनित्र सैट प्रयोग करने पड़ते हैं, जो पर्याप्त खर्चीले होते हैं।

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