नाभिकीय शक्ति संयन्त्र (Nuclear Power Plant) में नाभिकीय विखण्डन प्रक्रिया का प्रयोग किया जाता है जिसमें उच्च परमाणु भार वाले तत्त्व के नाभिक निम्न, परमाणु भार युक्त तत्त्वों में विखण्डित हो जाते हैं तथा बहुत अधिक मात्रा में ऊर्जा को छोड़ते हैं।
जब किसी पदार्थ को ऊर्जा में बदला जाता है, तो नाभिकीय ऊर्जा उत्पन्न होती है। इसकी दो विधियाँ हैं-परमाणु विखण्डन तथा परमाणु संलयन। इन विधियों का वर्णन निम्नवत् है-
- परमाणु विखण्डन (Nuclear fission)
- परमाणु संलयन (Nuclear fon)
1 परमाणु विखण्डन (Nuclear fission)
इसमें न्यूट्रॉनों की बौछार से बड़े नाभिकों को तोड़ा जाता है या दो छोटे नाभिकों को विभाजित किया जाता है। इस प्रकार यह प्रक्रिया लगातार चलती है और यह निरन्तर प्रक्रिया, श्रृंखला अभिक्रिया कहलाती है।
इस प्रक्रिया के दौरान बहुत अधिक मात्रा में ऊष्मा निकलती है और यह ऊर्जा नियन्त्रण के बाहर होती है और आपदा का कारण बन सकती है।
2. परमाणु संलयन (Nuclear fon)
इनमें दो छोटे नाभिकों को आपस में जोड़कर भारी नाभिक का निर्माण करके ऊर्जा प्राप्त की जाती है। यह अभिक्रिया उच्च ताप व दाब पर होती है तथा सूर्य में भी नाभिकीय संलयन अभिक्रिया होती है जिसे नियन्त्रित नहीं किया जा सकता है।
नाभिकीय ईंधन (Nuclear Power Plant Fuel)
नाभिकीय ईंधन के रूप में यूरेनियम एवं थोरियम मुख्य रूप से उपयोग किए जाते हैं। थोरियम का 80% भण्डार हमारे देश भारत में है।
यूरेनियम के नाभिकीय विखण्डन के द्वारा प्लूटोनियम भी बनाया जाता है। इनको विखण्डित करने पर बहुत अधिक मात्रा में ऊर्जा प्राप्त होती है। नाभिकीय शक्ति संयन्त्र में रिएक्टर में उत्पन्न वृहत मात्रा में ऊर्जा को जल से भाप बनाने में प्रयोग करते हैं, जोकि भाप टरबाइन को चलाती है। इससे संयोजित जनित्र इसकी यान्त्रिक ऊर्जा का प्रयोग करके विद्युत ऊर्जा को उत्पन्न करता है।
नाभिकीय संयन्त्र के भाग Parts of Nuclear Power Plant
एक नाभिकीय शक्ति संयन्त्र में निम्नलिखित अवयव होते हैं
नाभिकीय रिएक्टर इस संयन्त्र का मुख्य भाग होता है। इसमें अधिक मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होती है। इस ऊर्जा का प्रयोग भाप उत्पन्न करने व टरबाइन को चलाने में किया जाता है। इसके मुख्य अवयव ईंधन, मॉडरेटर, कण्ट्रोल रॉड, मेग्नॉक्स रिएक्टर एवं विभिन्न प्रकार के रिएक्टर होते हैं।
इसका मुख्य कार्य मुक्त ऊष्मा का प्रयोग करना, अधिक मात्रा में ऊष्मा ऊर्जा प्राप्त करना एवं अधिक ऊर्जा वाले न्यूट्रॉन प्रदान करना है।
2. हीट एक्सचेंजर (Heat exchanger)
इसका प्रयोग पानी को भाप में परिवर्तित करने के लिए तब किया जाता है, जब रिएक्टर में ऊष्मा उत्पन्न होती है।
3. भाप टरबाइन (Steam turbine)
भाप टरबाइन के घूमने के फलस्वरूप ही विद्युत उत्पन्न होती है। टरबाइन में प्राइम मूवर के घूमने के कारण भाप फैल जाती है, जिससे टरबाइन घूमने लगती है।
4. जनित्र (Generator)
टरबाइन से जनित्र एक शाफ्ट के द्वारा संयोजित रहता है जो टरबाइन के घूमने के फलस्वरूप विद्युत उत्पन्न करता है।
5. कण्डेन्सर (Condenser)
कण्डेन्सर का प्रयोग टरबाइन से बाहर निकलने वाली भाप को संग्रहित करने के लिए करते हैं। यह जल को भाप के रूप में संग्रहित करता है, जो हीट एक्सचेंजर में प्रवाहित होती है।
कार्यप्रणाली Working Method of Nuclear Power Plant
इस संयन्त्र में जल वाष्प तैयार करने के लिए नाभिकीय रिएक्टर प्रयोग किया जाता है जिसमे परमाण्विक ईंधन प्रयुक्त होता है। यह एक ऐसा ईंधन है जिसकी अल्प मात्रा ही विशाल मात्रा में ऊष्मीय ऊर्जा पैदा कर सकती है। इसमें परमाण्विक ईंधन के विखण्डन से ऊष्मीय ऊर्जा पैदा होती है।
ऊष्मीय ऊर्जा से वाष्प तैयार की जाती है और वाष्प दाब से वाष्प टरबाइन चलाई जाती है। वाष्प टरबाइन, आल्टरनेटर को यान्त्रिक शक्ति प्रदान करती है और आल्टरनेटर विद्युत शक्ति का उत्पादन करता है।
इस प्रकार के आल्टरनेटर्स अधिक क्षमता (मेगा बोल्ट ऐम्पियर, MVA) भारत में इस प्रकार के संयन्त्र तारापुर, नरौरा, राजस्थान आदि स्थानों में स्थापित किए गए हैं।
लाभ Advantages
वृहत मात्रा में शक्ति माँग को पूरा करने के लिए ये संयन्त्र अधिक उपयुक्त हैं। ये उच्च लोड गुणक (80 से 90%) पर अच्छी कार्यकुशलता प्रदर्शित करते हैं।
इनमें ईंधन परिवहन की लागत बच जाती है।
ये मौसमी स्थितियों से प्रभावित नहीं होते हैं।
- ईंधन का पुनः प्रयोग किया जा सकता है।
- इससे निम्न मूल्य पर शक्ति प्राप्त होती है। • इसका प्रचालन अधिक विश्वसनीय होता है।
हानियाँ Disadvantages
- इसकी आरम्भिक लागत बहुत अधिक होती है।
- इनमें रेडियोएक्टिव विकिरणों (radioactive radiations) का खतरा हमेशा बना रहता है, जो जीवों के लिए घातक होती हैं।
इस प्रकार के संयन्त्र परिवर्तनीय लोड दक्षता पर प्रचालित नहीं किए जा सकते हैं।
इसका अनुरक्षण मूल्य उच्च होता है।
इनमें कचरा निस्तारण एक बड़ी समस्या है।
यह कारीगरों के लिए स्वास्थ्य सम्बन्धी खतरा उत्पन्न करती है।
इसके प्रचालन के लिए कुशल श्रमिकों की आवश्यकता होती है।
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