ITI Electrician Theory -Battery Charging Method : NCVT Online Exam

ITI Electrician Battery Charging Method NCVT Online

बैटरी चार्जिंग के विभिन्न तरीके होते हैं, जिनका उपयोग बैटरियों की प्रकार और आवश्यकता के अनुसार किया जाता है। नीचे ITI Electrician के लिये उपयोगी कुछ प्रमुख बैटरी चार्जिंग विधियाँ (Battery Charging Methods) दी गई हैं:

Table Of Conent

1. Constant Current Charging (स्थिर धारा चार्जिंग)

इस विधि में बैटरी को एक स्थिर (निश्चित) करंट पर चार्ज किया जाता है, चाहे वोल्टेज कुछ भी हो। चार्जिंग के दौरान बैटरी का वोल्टेज धीरे-धीरे बढ़ता है, लेकिन करंट पूरे चार्जिंग समय में एक जैसा रहता है।

⚙️ कैसे काम करता है:

  • चार्जर एक निर्धारित करंट (जैसे 1 Ampere) देता है।
  • जैसे-जैसे बैटरी चार्ज होती है, उसका वोल्टेज बढ़ता जाता है।
  • जब बैटरी पूरी तरह चार्ज हो जाती है, तो वोल्टेज एक सीमा तक पहुँच जाता है।
  • उस बिंदु पर चार्जिंग बंद कर दी जाती है, या फिर स्वचालित प्रणाली द्वारा रोकी जाती है।

🔧 उपयोग:

  • आमतौर पर लीड-एसिड बैटरियों में उपयोग होता है।
  • कभी-कभी निकेल-कैडमियम (NiCd) और निकेल-मैटल हाइड्राइड (NiMH) बैटरियों में भी।

✅ फायदे (Advantages):

  • सरल तकनीक – चार्जर बनाना आसान है।
  • शुरुआती चरण में तेज़ चार्जिंग करता है।
  • कम लागत में बनाया जा सकता है।

❌ नुकसान (Disadvantages):

  • अगर समय पर बंद न किया जाए तो ओवरचार्जिंग हो सकती है।
  • ज्यादा समय तक चार्जिंग से बैटरी गर्म हो सकती है, जिससे उसकी लाइफ कम हो सकती है।
  • मैन्युअल निगरानी की ज़रूरत होती है।

2. Constant Voltage Charging (स्थिर वोल्टेज चार्जिंग)

इस चार्जिंग विधि में बैटरी को एक निश्चित वोल्टेज पर चार्ज किया जाता है। जैसे-जैसे बैटरी चार्ज होती है, उसका इनपुट करंट धीरे-धीरे घटता है, लेकिन वोल्टेज पूरी चार्जिंग प्रक्रिया में स्थिर बना रहता है।

⚙️ कैसे काम करता है

  • इस विधि में चार्जर बैटरी को एक स्थिर वोल्टेज (उदाहरण: 12V या 14.4V) प्रदान करता है, जो पूरी चार्जिंग प्रक्रिया के दौरान अपरिवर्तित रहता है।
  • शुरुआत में, जब बैटरी का वोल्टेज कम होता है, तो उसमें ज्यादा करंट प्रवाहित होता है।
  • जैसे-जैसे बैटरी चार्ज होती जाती है, उसका वोल्टेज चार्जर के वोल्टेज के करीब आने लगता है, और करंट धीरे-धीरे कम होता है।
  • अंत में, करंट लगभग शून्य हो जाता है।

🧰 उपयोग:

  • लीथियम-आयन बैटरी, लीड-एसिड बैटरी और UPS बैकअप सिस्टम में बहुत सामान्य।
  • स्मार्टफोन, लैपटॉप, और इलेक्ट्रिक वाहन (EV) चार्जिंग में यह तरीका अपनाया जाता है।

✅ फायदे (Advantages):

  • ओवरचार्जिंग से सुरक्षा – जैसे-जैसे बैटरी फुल चार्ज होती है, करंट घट जाता है।
  • स्वचालित नियंत्रण संभव है।
  • बैटरी की लाइफ बढ़ती है, अगर सही वोल्टेज चुना जाए।

❌ नुकसान (Disadvantages):

  • शुरुआत में तेज़ करंट आने से बैटरी गर्म हो सकती है।
  • करंट को नियंत्रित करने की जरूरत होती है (विशेषकर लिथियम बैटरियों में)।
  • पूरी चार्जिंग प्रक्रिया में समय ज्यादा लग सकता है, क्योंकि अंतिम चरण में करंट बहुत कम हो जाता है।

🔋 चार्जिंग स्टेज (विशेषकर लीड-एसिड बैटरी के लिए)

  • Bulk Stage: बैटरी को अधिक करंट के साथ चार्ज किया जाता है, जिससे यह तेजी से चार्ज होती है।
  • Absorption Stage: वोल्टेज स्थिर रहता है, करंट घटता है
  • Float Stage: बहुत कम वोल्टेज/करंट पर बैटरी को “Ready” हालत में रखा जाता है

3. Trickle Charging (धीमी चार्जिंग / न्यून-दर चार्जिंग)

Trickle Charging एक ऐसी चार्जिंग विधि है जिसमें बैटरी को बहुत कम करंट पर लगातार या अंतराल पर चार्ज किया जाता है, ताकि उसकी चार्ज स्थिति बनी रहे और वह पूरी तरह से डिस्चार्ज न हो।

यह मुख्यतः बैटरी को पूरी तरह चार्ज रखने (maintenance charging) के लिए उपयोग की जाती है, न कि उसे तेजी से चार्ज करने के लिए।

⚙️ कैसे काम करता है:

  • बैटरी को उसकी self-discharge (खुद-ब-खुद घटती चार्ज) को पूरा करने जितना ही करंट दिया जाता है।
  • उदाहरण स्वरूप, यदि बैटरी प्रतिदिन 1% चार्ज खोती है, तो ट्रिकल चार्जर उतना ही चार्ज धीरे-धीरे वापस देता है, जिससे बैटरी पूरी तरह से चार्ज बनी रहती है।
  • आमतौर पर यह करंट C/100 से C/500 के बीच होता है (जहां C = बैटरी की क्षमता)।

🔌 उदाहरण:

अगर आपके पास 12V, 100Ah की बैटरी है, तो ट्रिकल चार्जिंग करंट होगा:

  • C/100 = 1A या उससे भी कम
  • C/200 = 0.5A

🧰 उपयोग:

  • स्टैंडबाय बैटरियाँ (जैसे UPS, इमरजेंसी लाइट्स, टेलीफोन एक्सचेंज)
  • सेल्फ-डिस्चार्ज को रोकने के लिए लंबे समय तक स्टोरेज में रखी बैटरियों में
  • कार और बाइक की बैटरियों को ऑफ-सीज़न में चार्ज रखने के लिए

✅ फायदे (Advantages):

  • बैटरी को हमेशा फुल चार्ज स्थिति में बनाए रखता है।
  • ओवरचार्जिंग का खतरा नहीं, यदि करंट नियंत्रित हो।
  • बैटरी की उम्र बढ़ाता है अगर सही वोल्टेज और करंट में किया जाए।

❌ नुकसान (Disadvantages):

  • अगर करंट नियंत्रित न हो तो बैटरी को धीरे-धीरे ओवरचार्ज कर सकता है।
  • केवल मेनटेनेंस चार्जिंग के लिए है, पूरी तरह डिस्चार्ज बैटरी को चार्ज करने के लिए नहीं।
  • हमेशा पावर सप्लाई से कनेक्ट रहना ज़रूरी होता है।

4. Float Charging (फ्लोट चार्जिंग)

Float Charging एक ऐसी चार्जिंग विधि है जिसमें बैटरी को कम और स्थिर वोल्टेज पर चार्ज किया जाता है, ताकि वह पूरी तरह चार्ज रहने के साथ-साथ ओवरचार्ज भी न हो।

 यह मुख्यतः स्टैंडबाय बैटरियों को लंबे समय तक तैयार (ready) स्थिति में बनाए रखने के लिए प्रयोग की जाती है।

⚙️ कैसे काम करता है:

  • बैटरी को लगातार एक निश्चित फ्लोट वोल्टेज (जैसे 13.2V से 13.8V, 12V बैटरी के लिए) पर जोड़े रखा जाता है।
  • इस प्रक्रिया में करंट केवल उतनी ही मात्रा में प्रवाहित किया जाता है, जो बैटरी की स्व-निर्वहन क्षति की भरपाई के लिए पर्याप्त हो
  • यह करंट बैटरी की चार्ज स्थिति के अनुसार अपने आप घटता-बढ़ता है।

📌 उदाहरण:

अगर आपके पास 12V लीड-एसिड बैटरी है, तो फ्लोट वोल्टेज होगा लगभग:

बैटरी प्रकार फ्लोट वोल्टेज (12V बैटरी)
Flooded Lead-Acid
13.2 – 13.5 V
AGM / Gel Battery
13.5 – 13.8 V
Lithium (नहीं लागू)
फ्लोट चार्जिंग नहीं होती

🧰 उपयोग:

  • UPS (Uninterruptible Power Supply)
  • टेलीफोन एक्सचेंज
  • सोलर पावर बैकअप सिस्टम
  • इमरजेंसी लाइटिंग सिस्टम
  • डेटा सेंटर्स और मेडिकल उपकरण

✅ फायदे (Advantages):

  • बैटरी हमेशा फुल चार्ज स्थिति में रहती है।
  • ओवरचार्जिंग से सुरक्षा, अगर वोल्टेज सही हो।
  • कम रखरखाव की जरूरत, आदर्श “install-and-forget” सिस्टम।
  • लंबे समय तक बैटरी को तैयार (Ready) रखने का सबसे सुरक्षित तरीका।

❌ नुकसान (Disadvantages):

  • यदि फ्लोट वोल्टेज ज्यादा हो तो धीरे-धीरे बैटरी खराब हो सकती है।
  • कुछ बैटरियों (जैसे लिथियम) के लिए उपयुक्त नहीं।
  • केवल स्टैंडबाय उपयोग के लिए उपयुक्त, तेज़ चार्जिंग के लिए नहीं।

5. Fast Charging (तेज़ चार्जिंग)

Fast Charging एक उन्नत चार्जिंग तकनीक है जिसमें बैटरी को कम समय में अधिक करंट और वोल्टेज के माध्यम से चार्ज किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य है — कम से कम समय में अधिकतम चार्ज प्रदान करना, वह भी बैटरी की सुरक्षा बनाए रखते हुए।

⚡ कैसे काम करता है:

  • प्रारंभिक चरण में: स्थिर करंट (Constant Current)
  • बाद के चरण में: स्थिर वोल्टेज (Constant Voltage)
  • जब बैटरी एक निर्धारित वोल्टेज स्तर तक पहुँचती है, तो करंट को धीरे-धीरे घटा दिया जाता है और चार्जिंग गति धीमी हो जाती है।
  • आधुनिक स्मार्ट चार्जर्स बैटरी के वोल्टेज, करंट और तापमान की सतत निगरानी करते हैं, जिससे चार्जिंग प्रक्रिया सुरक्षित बनी रहती है।

📱 उदाहरण (Examples):

👉 स्मार्टफोन में:
  • 30W, 50W, 100W या उससे अधिक पावर रेटिंग वाले चार्जर आम हैं।
  • लगभग 30 मिनट में 70% से 90% तक बैटरी चार्ज हो जाती है।
👉 इलेक्ट्रिक वाहन (EV) में:
  • DC Fast Charging तकनीकें जैसे:
    • CCS, CHAdeMO, Tesla Supercharger
  • कई EVs मात्र 20–30 मिनट में 80% तक चार्ज हो जाती हैं।

✅ फायदे (Advantages):

  • समय की बचत – कुछ ही मिनटों में अधिक चार्ज।
  • इमरजेंसी चार्जिंग के लिए बहुत उपयोगी।
  • स्मार्टफोन, EVs और पोर्टेबल डिवाइसों के लिए आदर्श।

❌ नुकसान (Disadvantages):

  • बैटरी के तापमान में वृद्धि होती है, जिससे बैटरी लाइफ घट सकती है।
  • गलत चार्जर या सिस्टम से चार्ज करने पर बैटरी डैमेज हो सकती है।
  • सभी बैटरियाँ फास्ट चार्जिंग के अनुकूल नहीं होतीं

🧪 Fast Charging Profile (सामान्य तौर पर):

  • Stage 1: High Current (80% तक बहुत तेज़)
  • Stage 2: Constant Voltage (80% से 100% धीरे)
  • Stage 3: Monitoring & Cut-off (बैटरी सुरक्षित रूप से डिसकनेक्ट)

🛡️ सावधानियाँ:

  • हमेशा मूल कंपनी का चार्जर ही उपयोग करें।
  • फास्ट चार्जिंग करते समय बैटरी ज्यादा गर्म हो तो इस्तेमाल से बचें।
  • ओवरचार्जिंग से सुरक्षा के लिए स्मार्ट बैटरी मैनेजमेंट सिस्टम जरूरी है।

6. Pulse Charging

Pulse Charging एक चार्जिंग तकनीक है जिसमें बैटरी को लगातार, छोटे-छोटे करंट के पल्स (नाड़ियों) के रूप में चार्ज किया जाता है, न कि लगातार एक समान करंट से। इन पल्स के बीच छोटे-छोटे “विश्राम” (rest) समय होते हैं, जिससे बैटरी को करंट सोखने (absorb) और रिकवर करने का समय मिलता है।

⚙️ कैसे काम करता है:

  • चार्जर एक high-frequency current pulse भेजता है (जैसे 1ms ON, 1ms OFF)।
  • हर pulse में करंट थोड़े समय के लिए बैटरी में भेजा जाता है।
  • OFF टाइम में बैटरी की इलेक्ट्रोकेमिकल प्रतिक्रियाएँ स्थिर होती हैं।
  • कुछ pulse charging सिस्टम negative pulses भी भेजते हैं जिससे बैटरी का sulfation हटाया जा सके।

🧪 उदाहरण:

  • यदि बैटरी को 10A करंट देना है, तो pulse charging में उसे 10A के छोटे-छोटे pulses में भेजा जाएगा।
  • एक cycle: 1ms pulse ON → 1ms OFF
    (यानि 50% ड्यूटी साइकल पर)

✅ फायदे (Advantages):

  • बैटरी की ऊर्जा ग्रहण करने की क्षमता बढ़ती है।
  • Overheating कम होती है क्योंकि हर pulse के बाद ठंडा होने का समय मिलता है।
  • बैटरी में सल्फेशन (Sulfation) कम करता है — विशेषकर लीड-एसिड बैटरियों के लिए फायदेमंद।
  • बैटरी की लाइफ और परफॉर्मेंस दोनों बढ़ती है।

❌ नुकसान (Disadvantages):

  • तकनीक जटिल है — साधारण चार्जर से संभव नहीं।
  • महंगे चार्जर और बेहतर कंट्रोलर की जरूरत होती है।
  • सभी बैटरियाँ उपयुक्त नहीं (जैसे कुछ लिथियम बैटरियाँ)।

🧰 प्रयोग (Uses):

  • लीड-एसिड बैटरियाँ (विशेष रूप से डीसल्फेशन के लिए)
  • मिलिट्री और एविएशन बैटरी सिस्टम
  • कुछ EV और इंडस्ट्रियल बैटरियाँ
  • रिसर्च और उच्च क्षमता के बैटरी सिस्टम

🔌 Pulse Charging का उद्देश्य:

  1. चार्जिंग गति बढ़ाना
  2. बैटरी का तापमान नियंत्रित रखना
  3. बैटरी की दक्षता और लाइफ बढ़ाना
  4. Sulfation को हटाना या रोकना

ITI Electrician ट्रेड में Battery Charging Method का महत्व -NCVT Online Exam

Battery Charging Method, ITI Electrician ट्रेड का एक अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह न सिर्फ बैटरी की आयु और कार्यक्षमता को बढ़ाता है, बल्कि तकनीशियन को व्यावसायिक रूप से दक्ष और सुरक्षित बनाता है। सही चार्जिंग तकनीक सीखना एक कुशल इलेक्ट्रिशियन बनने के लिए आवश्यक है।

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FAQs -

बैटरी चार्जिंग (Battery Charging) क्या है?

बैटरी चार्जिंग (Battery Charging) वह प्रक्रिया है जिसमें बाहरी विद्युत स्रोत से बैटरी में विद्युत ऊर्जा भरकर उसे पुनः उपयोग लायक बनाया जाता है।

मुख्य बैटरी चार्जिंग (Battery Charging) विधियाँ निम्नलिखित हैं:

  1. Constant Current Charging

  2. Constant Voltage Charging

  3. Trickle Charging

  4. Boost Charging

  5. Float Charging

इस विधि में बैटरी को एक निश्चित धारा (current) से चार्ज किया जाता है, जब तक वोल्टेज निर्धारित सीमा तक नहीं पहुँच जाता।

यह एक धीमी चार्जिंग प्रक्रिया है, जिसमें कम मात्रा में करंट से बैटरी को लगातार चार्ज किया जाता है ताकि वह पूरी तरह से चार्ज बनी रहे, खासतौर पर स्टैंडबाय उपकरणों में।

Overcharging से बैटरी गर्म हो सकती है, गैस रिसाव हो सकता है, प्लेट्स पर सल्फेशन हो सकता है, जिससे बैटरी की आयु कम हो जाती है और कभी-कभी विस्फोट का खतरा भी होता है।

  • सही वोल्टेज और करंट का उपयोग करें।

  • बैटरी वेंटिलेटेड जगह पर रखें।

  • टर्मिनल को साफ और टाइट रखें।

  • सुरक्षा उपकरण (ग्लव्स, गॉगल्स) पहनें।

यह बैटरी की क्षमता (Ah) और चार्जिंग करंट पर निर्भर करता है। सामान्यतः, एक 12V 100Ah बैटरी को 10A करंट से चार्ज करने में लगभग 10-12 घंटे लगते हैं।

Boost Charging तब की जाती है जब बैटरी बहुत कम डिस्चार्ज हो चुकी होती है और उसे जल्दी चार्ज करना हो। इसमें उच्च करंट का उपयोग होता है, लेकिन यह नियंत्रित और सीमित समय के लिए किया जाता है।

यह प्रक्रिया सामान्य है लेकिन बार-बार गहरी डिस्चार्जिंग से बैटरी (Battery) की क्षमता और लाइफ कम हो सकती है। इसे Deep Discharge कहते हैं, और इससे बचना चाहिए।

  • Voltmeter – वोल्टेज मापने के लिए

  • Ammeter – करंट मापने के लिए

  • Hydrometer – Electrolyte का Specific Gravity मापने के लिए (Lead-acid बैटरी में)

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